शनिवार, 25 अप्रैल 2009

हिन्दी समाज में साहित्यकार...

आज के हिन्दी समाज में साहित्यकारों की स्थिति का अनुमान करने के लिए आइये जरा एक नजर उनकी आमदनी के श्रोतों पर डालें। दरअसल कोई भी सच्चा लेखक अपने लेखन को केवल जीविका का साधन नहीं समझता, लेकिन उसे लिखने के लिए जीने की जरूरत तो होती ही है। इसलिए उसे जीविका के साधन की भी आवश्यकता पड़ती है। हिन्दी समाज जो इन दिनों अपने आर्थिक पिछडेपन के बावजूद कुल मिलाकर, कम से कम पढ़े-लिखे तबके में ही, जैसे हो वैसे धन कमाने की अंधी दौर में शामिल है, वह इस बात की रत्ती भर भी चिंता नहीं करता कि उसके साहित्यकारों का प्रतिदान इतना कम क्यों है? जिस समाज के प्रति जिम्मेदारी का साहित्य में लगभग मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है उसी समाज को न तो साहित्य में रूचि है , न ही उसके रचनेवालों की कोई परवाह। साहित्यकारों के कल्याण, आवास, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा, रोयल्टी आदि को लेकर न तो समाज की दिलचस्पी है, न ही लेखक संगठनों में चिंता है और न ही सरकारी एजेंशियों को। आज कि स्थिति यह है कि प्रायः सभी अन्य कला माध्यमों - चित्रकला, संगीत, नृत्य, मूर्तिशिल्प- के मुकाबले साहित्य में रायल्टी और पारिश्रमिक बेहद डेमी रफ़्तार से बढे हैं। इसका एक और दुखद पहलू यह है कि अंग्रेज़ी में लिखने से अधिक रूपया मिलता है यह हिन्दी जगत की सामान्य समझदारी है। भारत के ही कुछ अंग्रजी लेखकों को, जिनमे से कुछ को छोड़कर अधिकांश अन्य भाषाई लेखकों की तुलना में खासे मीडियाकर ठहरते हैं- को भी लाखों की अग्रिम रायल्टी मिल जाती है जबकि हिन्दी के बड़े लेखकों को भी यह नसीब नहीं। आज के अधिकांश साहित्यकार जीवनयापन के लिए कुछ-न-कुछ और करने पड़ मजबूर हैं क्योंकि केवल साहित्य लिखकर इतना नहीं कमाया जा सकता कि गरिमा और सुविधा के साथ जीवन यापन किया जा सके। इस समस्या का नैतिक आयाम यह है कि साहित्यकार जाने-अनजाने ऐसे-वैसे समझौते करने और चुप्पियाँ बरतने के लिए मजबूर हो जाता है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सृजन करे साहित्य की देखें उसकी पीड़।
    प्रश्न उठाया आपने सचमुच है गम्भीर।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. gambhir mudda uthaya hai aapne,iski andekhi nhi honi chahiye.ek rachayita ki rachna ko samman dena sabhi ka farz banta hai magar uske sath aur bhi jarooratein hain jinki andekhi nhi ki ja sakti.

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  3. sahityakaron ke prati apki chinta jayaj hain hindi lekhakon ke parti doyam darje ki mansikta hamare desh ke longon me hain . | Pradeep Wardha Email- pradeepkumar4522@gmail.com

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